मेरी आदत है मैं पहले से कुछ जानकारी नहीं लेता हूँ कि आगामी यात्रा में कब, क्या होगा। कहाँ जाएँगे। कहाँ रूकेंगे। कहाँ खाएँगे। मुझे लगता है कि जो होगा, अच्छा ही होगा। और होता ही है।
आज टोक्यो से भागते दौड़ते हमने ओसाको की फ़्लाइट पकड़ी। टोक्यो एयरपोर्ट पर कर्मचारी अंग्रेज़ी कम समझते हैं। उससे उलझन भी होती है। फिर एयरलाइंस के नाम भी बदलते रहते हैं। उलझन और बढ़ जाती है। उन्नीस लोग साथ हो तो कोई न कोई कहीं न कहीं पीछे छूट ही जाता है। उसे समेटो तो कोई और फिसल जाता है। मुझे इन सबसे परेशानी नहीं होती। इन्हें मैं यात्रा के आनंद का अभिन्न अंग मानता हूँ।
लोग सोच रहे थे कि हम एयरपोर्ट से होटल जाएँगे। नहा-धो कर, खा-पी कर कुछ घूमेंगे। थोड़ा आराम भी करेंगे। समय का भी अंतर है। जापान भारत से साढ़े तीन घंटे आगे है। हम कल शाम छः बजे चले। सुबह छः बजे टोक्यो और दस बजे ओसाका पहुँचे। तब से हम घूम रहे हैं। अब तक होटल नहीं गए हैं। कुछ लोग असहज हैं।
पर जो दो नज़ारे देखे, उनसे दिन बन गया।
पहला था तेरह सौ वर्ष पूर्व बना बौद्ध मन्दिर। बहुत ही भव्य और विशालकाय। मन्दिर के अंदर बुद्ध की भव्य प्रतिमाएँ हैं। अद्भुत।
दूसरा अक्वेरियम। इसमें सबसे ख़ास बात यह कि यहाँ विश्व के हर क्षेत्र की जलवायु की नक़ल बना दी गई है। इसलिए यहाँ पेंग्विन भी हैं। और सील भी। व्हेल भी। डॉल्फिन भी। शार्क भी।
राहुल उपाध्याय । 18 अगस्त 2024 । ओसाका
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