तीन-चार साल पहले जब मैं अपना घर छोड़ कर अलग रह रहा था, पत्नी का फ़ोन आया कि कार की चाबी नहीं मिल रही है। कार ड्राइववे पर खड़ी है। ताला लगा हुआ है। ड्राइववे पर खड़ी, जी का जंजाल बन गई है। दो गाड़ियाँ और भी हैं। उनमें से बस एक गराज में जा पा रही है। दूसरी सड़क पर है। जल्दी से इस गाड़ी को दफ़ा करो।
आजकल की गाड़ियाँ ऐसी हैं कि उनकी चाबी बनवाने में सात सौ-आठ सौ डॉलर का खर्च हो जाता है। यानी तक़रीबन पचास हज़ार रूपये।
यह गाड़ी पुरानी हो चली थी। बेचने पर शायद ज़्यादा क़ीमत नहीं मिलती। सो चाबी बनवाने के खर्च को ध्यान में रखते हुए मैंने नेशनल पब्लिक रेडियो के स्थानीय स्टेशन (वाशिंगटन विश्वविद्यालय द्वारा संचालित) को दान में दे दी।
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मेरे एक मित्र कनाडा गए घुमने। सिएटल से वेन्कुवर पास ही है। लोग अक्सर जाते रहते हैं। सब अपनी कार से ही जाते हैं।
ये शॉपिंग करने निकले। कास्टको। जो कि एक महाकाय स्टोर है। शॉपिंग के बाद स्टोर से निकले तो भूल गए कि कार कहाँ पार्क की थी। ग़नीमत से कार की चाबी में यह सुविधा है कि बटन दबा दो तो कार की लाईट चमचमाने लगती है और आवाज़ भी करती है। इस तरह से थोड़ी देर में कार मिल गई। साथ में एक साल का बच्चा भी था। सो स्ट्रोलर से उसे निकालना, कार सीट में बिठाना, इन सब गतिविधियों में व्यस्त हो गए।
घर - जो कि एक एयर बी एण्ड बी है - पहुँचे तो पता चला कार की चाबी नहीं मिल रही है। बहुत ढूँढा नहीं मिली। पत्नी और बच्चे और सामान को घर पर छोड़कर वापस वह कास्टको गया। वहाँ भी नहीं मिली। कार डीलर को फ़ोन किया। उन्होंने कहा कि गाड़ी यदि चल रही है तो चाबी गाड़ी में ही है।
अब ये अजब सुविधा या दिक्कत है कि इन दिनों चाबी से गाड़ी स्टार्ट नहीं होती। एक बटन दबाने से ही गाड़ी चल देती है। बशर्ते चाबी आपके पास हो।
वह वापस घर आया। घर पहुँचकर गाड़ी बंद हो गई। अब वह चलने का नाम न ले।
रहस्य गहराता गया। फिर निष्कर्ष निकाला गया कि चाबी शायद कार की छत पर रह गई थी जो बड़ी देर तक वहीं रही लेकिन आखरी ट्रिप में कहीं गिर गई।
झक मारकर सात सौ डॉलर की फ़ीस देकर नई चाबी बनवानी पड़ी।
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भारत में एक मित्र का आलीशान घर है। बहुत ही आरामदायक एवं वैभव से भरपूर। महल कह लीजिए। लेकिन कहीं किसी की बुरी नज़र न लग जाए इसलिए सब कुछ छुपा रखा है। बाहर गेट से लगता है जैसे कोई खंडहर है। पीछे की ओर खूबसूरत लॉन है और भव्य मुख्य द्वार है।
हर कमरा बहुत बड़ा है। हर कमरे के साथ विशालकाय बाथरूम है। अलमारियाँ है। बैठने की व्यवस्था है। मतलब हर कमरा अपने आप में टू बी एच के है। के - यानी किचन - को छोड़ दीजिए।
रात को जब मैं अपने कमरे में सो रहा था, मित्र का फ़ोन आया कि अंदर से ताला अच्छे से लगा लेना। और एक रॉड रखी है कमरे में, उसे भी दरवाज़े में फँसा देना ताकि अतिरिक्त सुरक्षा रहे। कभी ऐसा हुआ नहीं है कि कोई घर में घुस आए। पर ज़माना ख़राब है। सबको हमारी सफलता सुहाती नहीं है। कोई भी घुस सकता है। कोई कितना भी हल्ला करे, दरवाज़ा नहीं खोलना।
घर के परिसर के बाहर गेट है। गार्ड है। भव्य द्वार पर ताला है। रॉड है। फिर भी इतनी एहतियात?
ख़ैर, मैंने रॉड लगा ली। जैसा देश, वैसा भेष।
हम किसी पार्टी में गए। आते-आते रात के एक बज गए। वे अपने कमरे में सोने चले गए, मैं अपने।
उनके बेटे और बहू शहर से बाहर गए हुए थे। घर में हम तीन ही थे।
क़रीब एक घंटे बाद फ़ोन आया। हम अपने कमरे में बंद हो गए हैं। तुम नीचे आकर बाहर से खोल सकते हो।
मैं गया। दरवाज़े में चाबी लगी हुई थी। मैंने चाबी से ताला खोला और वह बाहर आ पाया।
हुआ यह कि जब हम पार्टी में गए थे तब वह अपना कमरा लॉक करके गया था। एक और ताला अतिरिक्त सुरक्षा प्रदान करता है।
जब वे कमरे में घुसे तो ताला तो खोल दिया पर चाबी की-होल में ही रह गई। फिर अंदर से बंद कर दिया।
यह अजीब बात है कि जब चाबी की-होल में है तो अंदर से ताला बंद तो हो सकता है पर खुल नहीं सकता। खुलता बाहर से चाबी से ही है। या यदि चाबी की-होल से गिर जाए या हटा दी जाए।
राहुल उपाध्याय । 1 सितम्बर 2024 । गोरखपुर
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