एक बार चम्मच न होने की वजह से मैंने लंच नहीं खाया था। लंच में खिचड़ी ले कर गया था। चम्मच भूल गया था। बिना चम्मच के हाथ से बचपन में कई बार खाई है। पर 54 की उम्र में हिम्मत नहीं हुई। खाने से पहले और खाने के बाद हाथ धोने की भी समस्या थी।
पिछले सप्ताह ऑस्ट्रिया में एक प्राचीन होटल में ठहरना हुआ। अति मनोरम एवं रमणिक स्थान पर। दिल ख़ुश हो गया।
नहाने के लिए टब था और हाथ से घुमाने वाला फ़व्वारा। कोई शॉवर नहीं। कोई शॉवर कर्टेन नहीं। पानी दुनिया भर में फैले। मुझे क़तई पसंद नहीं कि पानी की एक बूँद भी बाथटब से बाहर निकले। टॉयलेट सीट, वॉश बेसिन का एरिया गीला हो जाए।
तीन दिन नहीं नहाया। ऐम्सटरडम आकर ही नहाया।
ऐसा नहीं कि मैं शॉवर से ही नहा सकता हूँ। भारत में तमाम जगहों पर मैं बाल्टी से नहाया हूँ। घाट पर, कुएँ पर, खेत पर - सब जगह नहाया हूँ। पर एक बाथरूम में जहां और भी काम होते हैं उसे इतना गीला नहीं कर सकता।
हम अपनी सुविधाओं के कितने ग़ुलाम हो जाते हैं।
राहुल उपाध्याय । 22 अगस्त 2024 । प्रॉग
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