Saturday, August 24, 2024

आई लव यू

तुम इतना शर्माती क्यों हो? जो कहना हो, कह दो। आई लव यू बोलना है तो बोल दो। मेरी याद आती है, बोलना है तो बोल दो। इसमें इतना संकोच कैसा? ज़िन्दगी में जब जो होता है, अच्छा ही होता है। इसमें इतना क्या सोचना? न तुम्हारा वज़न गिर जाएगा, न मेरा बढ़ जाएगा। जो जैसा था, वैसा ही रहेगा। मन पर से बोझ ज़रूर कम हो जाएगा। हल्कापन महसूस करोगी। उड़ने लगोगी। जो कभी स्कूल-कॉलेज में नहीं कहा, अब कह दोगी तो थोड़ा और जी लोगी। जवानी लौट आएगी। नुक़सान कुछ नहीं। फ़ायदा ही फ़ायदा है। 


मुझे आई लव यू बोलना है। बहुत दिनों से बोलना चाह रही हूँ। पर हिम्मत नहीं जुटा पा रही हूँ। पहले कभी किसी से कहा नहीं। मेरे लिए ये चाँद पर क़दम रखने जितना बड़ा है। तुमने तो सौ बार, सौ लोगों से कहा होगा। तुम्हारे लिए सब आसान है। तुम कुछ छुपाते भी नहीं। तुम्हें किसी का डर नहीं। मुझे आई लव यू कहना, प्रोपोज़ करने जैसा लगता है। भारी भरकम। तुमने ठीक से जवाब नहीं दिया तो मैं तो मर ही जाऊँगी। सारी ज़िंदगी जिस लम्हे को बचा कर रखा उसका कत्ल होते नहीं देख सकती। तुम बहुत अच्छे हो। जैसे भी हो बहुत अच्छे लगते हो। औरों की तरह चिपकू नहीं हो। मैं फ़ोन नहीं करूँ तो कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। बार-बार पिंग भी नहीं करते कि कहाँ हो, कैसी हूँ। कई बार तो लगता है कि तुम्हें कोई प्यार-व्यार है भी या नहीं। या तुम जानते भी हो कि प्यार क्या होता है। रात भर जागे हो किसी के लिए? दिन भर बेचैन रहे हो? तुम बहुत ही केयरफ़्री और केज़ुअल हो। बहुत ही निष्ठुर। और इसीलिये तुम पर और भी प्यार आता है। तुम जैसे हो, वैसे हो। कोई कवच नहीं। आवरण नहीं। दिखावा नहीं। 


फिर भी चाहती हूँ कि जिस दिन आई लव यू बोलूँ तुम थोड़ा संजीदा हो जाओ। ऐसे रिएक्ट करो जैसे ये लफ़्ज़ पहली बार सुन रहे हो। मुझे ऐसे चाहो जैसे किसी को कभी चाहा न हो। 


तुम्हारी नासंजीदगी, तुम्हारा निर्मोही नैचर ही तुम्हारी ख़ासियत है। मैं भी कैसी बेवक़ूफ़ हूँ। क्यूँ कभी-कभी तुम्हें बदलना चाहती हूँ। 


पता है मैं क्या सोचती थी? मैं सोचती थी कि आई लव यू सिर्फ़ उसी से बोलना चाहिए जिसके साथ सारी ज़िंदगी बितानी हो। आई लव यू बोलकर बाय नहीं बोल सकते। सात जनम का साथ हो जाता है। 


यहाँ तो मैं शादीशुदा हूँ। दो बच्चे भी हैं। तलाक़ का भी कोई इरादा नहीं है। सब बढ़िया चल रहा है। फिर तुम्हारे साथ यह सब क्यूँ?


जिसके साथ इतने सालों से हूँ न उसने मुझसे, न मैंने उससे कभी आई लव यू कहा। न कहने का मन है। पर बंधन तो है सात जनम का। 


मन ही मन तुमसे हज़ार बार प्यार कर चुकी हूँ। हज़ार बार आई लव यू भी कह चुकी हूँ। क्या मैं अब सती-सावित्री नहीं रही? क्या मन से किसी को चाह लेना भी बेवफ़ाई है? क्या मेरे सारे करवा चौथ झूठे हैं?


सच, अब तो ख़ुद पर भी शक होने लग गया है कि मैं करवा चौथ किसके लिए करती हूँ? तुम्हारी लम्बी उम्र के लिए? हमारे प्यार के लिए?


तुम तो इन सारी बातों को मानते ही नहीं। सारे व्रत-उपवास तुम्हें बेकार लगते हैं। 


तुम इतने निर्दयी क्यों हो? अगर मैं कल से बात करना बंद कर दूँ, तुम्हें कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा। चाहे तीन दिन, तीन महीने, तीन साल गुजर जाए। 


जानती हूँ मैं भी जी लूँगी। सब जी लेते हैं। सब साथ जीने-मरने की क़समें खाते हैं। पर सब जी लेते हैं। मेरे देवर को गुज़रे नौ साल हो गए। देवरानी आराम से हँस-खेल रही है। अपने बच्चों के साथ। एक बेटे की तो शादी भी हो गई। जैसे सबका परिवार, वैसा उसका। 


मुझे हमारी पहली मुलाक़ात अच्छी तरह से याद है। शुरू से ही तुम मुझे तुम-तुम कहते रहे। मुझे बड़ा अजीब लगा। ऐसे कोई बात करता है? फिर सोचा चलो बुजुर्ग होंगे। वह तो बाद में पता चला कि तुम मुझसे दो साल छोटे हो। मैं आभिजात्य परिवार की हूँ। नैनीताल की रहने वाली। बचपन से कान्वेन्ट स्कूल मे पढ़ी। घर में नौकर-चाकर कार सब शुरू से थे। मेरे परिवार के कई लोग अमेरिका में रह रहे थे। जब भी आते थे किलो-दो किलो एम एण्ड एम लाते थे। लूडो, स्क्रेबल, मोनोपोली हम बचपन से खेलते आए हैं। हम लोग पिकनिक पर जाते थे। होलिडेज़ पर निकल जाते थे। मेरे पिता इंजीनियर थे। माँ स्कूल में टीचर। 


तुम्हारा और मेरा कहाँ कोई ताल-मेल था। हम कभी एक नहीं हो सकते थे। तुम ठहरे गाँव वाले। लोटा लेकर खेत जानेवाले। हम पाश्चात्य शैली वाले। हम डाइनिंग टेबल वाले। तुम कहीं भी बैठ कर खाने वाले। तुम शुद्ध हिन्दी वाले। हम अंग्रेज़ी वाले। 


एक दिन मुझे लगा कि ज़िन्दगी में मज़ा नहीं रह गया है। कब मैं नौकरानियों को सम्भालते-सम्भालते ख़ुद नौकरानी बन गई हूँ पता ही नहीं चला। सारी ज़िंदगी रिश्ते निभाने में चली गई। कभी पति, कभी सास, कभी माँ, कभी बच्चे। मैं कहाँ खो गई?


सुबह से शाम तक कोई काम नहीं करती हूँ। करवाती हूँ। क्या मैं न करवाऊँ तो नहीं होगा? होगा, ज़रूर होगा। कमला अच्छी तरह से जानती है कब क्या बनाना है। बिन्दु अच्छी तरह से जानती है कब कपड़े धो कर सुखाने है। गोविंद को पता है कब बाज़ार जाना है और क्या लाना है। पूर्वा भी झाड़ू-पोंछा ठीक कर लेती है। मेरी क्या ज़रूरत?


तब तुम्हीं ने समझाया था कि ज़िन्दगी बहुत खूबसूरत है। तुम अपने मानसिक दायरे से बाहर तो निकलो। हम एक आदर्शवादी जीवन जीने के चक्कर में खुद को कितनी बार मार देते हैं। स्कूल में कोई हाथ न लगा दे इसलिए दस हाथ दूर चलते हैं। कभी किसी स्कूल ट्रिप पर नहीं गए कि भगवान जाने लड़के क्या कर बैठे। किसी के साथ कोई फिल्म नहीं देखी। किसी के साथ जाकर आईसक्रीम नहीं खाई। किसी से मिलने मन्दिर नहीं गई। किसी लड़के के साथ शादी में नहीं नाची। 


तुमने यह भी कहा था कि - ऊपर जाने से पहले मेरे पास आ जाना। मैं शायद एक आभिजात्य ज़िंदगी न दे पाऊँ। लेकिन एक ज़िन्दगी तो होगी। ट्राय करके देख लेना। प्लान बी समझ कर। 


तुम्हारा आश्वासन पाकर बहुत अच्छा लगा। लगा कोई तो है इस दुनिया में जो मुझे ज़िन्दा रखना चाहता है। चाहता है कि मैं जीवन अपने मन मुताबिक़ जीऊँ। किसी सीमित दिनचर्या में नहीं। 


आज भी बस यही विचार मुझे ज़िन्दा रखे हुए हैं। मैं शायद ही कभी उस जीवन को जी पाऊँ जिसकी तुम बात करते हो। पर कम से कम उम्मीद तो रख सकती हूँ। 


तुममें और मुझमें कई अंतर हैं। तुम हो पूजा-पाठ वाली, व्रत-उपवास वाली। हाँ, तुम बाक़ी लोगों जैसी नहीं हो कि किसी प्रयोजन से व्रत करो। तुम जानती हो कि ईश्वर को प्रभावित नहीं किया जा सकता। न उससे अच्छा काम करवाया जा सकता है, न बुरा। वह किसी की सुनता ही नहीं है। यहाँ हम दोनों में सहमति है। 


अंतर वहाँ है जहां तुम राम से, राम के चरित्र से बेहद प्यार करती हो। वे तुम्हारे आदर्श हैं। मुझे इससे भी कोई आपत्ति नहीं। दीवार का विजय या वीर-ज़ारा का वीर भी आदर्श पात्र हैं। लेकिन उनकी तस्वीर की पूजा करना मुझे ठीक नहीं लगता। फ़िल्में बार-बार देखी जा सकती हैं, देखी जानी चाहिए। गाने बार-बार सुने जा सकते हैं, सुने जाने चाहिए। रामचरितमानस भी बार-बार पढ़ो। चौपाईयाँ गाओ। लेकिन किसी ख़ास पात का जन्मदिन मनाना ठीक नहीं। 


बस यही अंतर हमारे बीच कई बार विवाद की स्थित उत्पन्न कर देता है। हम दोनों अच्छे इंसान हैं पर ऐसे मौक़ों पर सहज नहीं हो पाते हैं। 


जब दो व्यक्ति हर मुद्दे पर खुलकर बात न कर सके तो एक दूरी सी बन ही जाती है। हम इतने करीब होकर भी कितने दूर है। 


मैं नहीं चाहता कि तुम्हारी विचारधारा बदलूँ। तुम्हें पूरा हक़ है अपनी सोच पर। 


एक और बात यह कि तुम्हें मैडिटेशन से फ़ायदा होता है। शांति मिलती है। मुझे आज तक मैडिटेशन समझ नहीं आया। रत्ती भर का भी फ़ायदा नहीं मिला। उल्टा समय की बर्बादी होती है सो अलग। 


हम दोनों में मतभेद कई हैं। उन पर बहस हो सकती है। चर्चा हो सकती है। सहमति भी हो सकती है। पर हर विषय पर सहमति हो यह आवश्यक नहीं। 


हम साथ रह सकते हैं। दो घंटे। दो दिन। दो हफ़्ते। फिर शायद हमारे मतभेद हमें उद्वेलित कर देंगे। शांति भंग कर देंगे। 


हम दोनों खुले दिमाग़ के हैं। जैसे कल थे, वैसे कल नहीं रहेंगे। लेकिन दोनों एक जैसे नहीं हो सकते। होना भी नहीं चाहिए। विविधता ही नवीनता को जन्म देती है। 


हम न पास हैं, न दूर हैं। इतने पास हैं कि एक-दूसरे को सहारा दे सकते हैं। मदद के लिए उपस्थित हो सकते हैं। इतने दूर है कि खुल कर साँस ले सकते हैं, जी सकते हैं। मुक्त गगन में उड़ सकते हैं। 


मुझे अपनी आज़ादी पसन्द है। तुम्हें अपनी। हम दोनों को वह सब प्राप्त है जो हमने पूरी शिद्दत से चाहा। फिर शिकायत कैसी?


इस रिश्ते को कोई नाम देना भी आवश्यक नहीं। हर चीज़ का नाम होना ज़रूरी नहीं। कितने सारे रंग हैं जिनके शब्दकोश में नाम भी मिल जाएँगे पर क्या फ़ायदा। तितली जैसी है, खूबसूरत है। कौन से रंग हैं, कौन से नहीं इनसे क्या फ़र्क़ पड़ता है।


किसी से प्यार हो जाना - इसका क्या मतलब है? क्या बलिदान और त्याग प्यार की अनिवार्य शर्त है? एक न एक को समझौता करना ही होगा? क्यों दोनों अपनी-अपनी बात पर क़ायम नहीं रह सकते? क्यों दोनों की पसंद-नापसंद एक जैसी होनी चाहिए? क्यों दोनों का एक दूसरे से बंधना आवश्यक हो जाता है? क्यों दोनों आज़ादी से नहीं जी सकते?


राहुल उपाध्याय । 24 अगस्त 2024 । प्रॉग  




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