Saturday, August 17, 2024

रिफंड



चपरासीः सर! आपसे कोई मिलना चाहता है। 


प्रिंसिपलः कौन है? पैरेंट्स अभी नहीं मिल सकते। उनके मिलने का समय दो से तीन है। 


चपरासीः पैरेंट नहीं है


प्रिंसिपलः फिर कौन है?


चपरासीः कहता है कह दो मूलचंद आया है। 


प्रिंसिपलः मूलचंद? कैसा दिखता है? बेवक़ूफ़ या बुद्धिमान?


चपरासीः बुद्धिमान 


प्रिंसिपलः तो फिर स्कूल इंस्पेक्टर तो नहीं हो सकता। अंदर भेजो



मूलचंदः मेरा नाम मूलचंद है। मैं यहाँ अठारह साल पहले पढ़ता था। ये देखो मेरा ग्रेजुएशन सर्टिफिकेट। मैंने यहाँ पढ़ कर कुछ नहीं सीखा। मैं दो पैसे नहीं कमा सकता। दुनिया लाखों-करोड़ों कमा रही है। विदेश जा रही है। डॉलर कमा रही है। रूपया गिरता जा रहा है। और मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है। यह सब इस स्कूल का दोष है। मुझे कुछ भी नहीं सिखाया। मैं बर्बाद हो गया। मैंने जितनी भी फ़ीस जमा की थी, मुझे सब वापस दे दीजिए। जल्दी। मेरे पास ज़्यादा वक़्त नहीं है। 


प्रिंसिपलः कैसी बेवक़ूफ़ों जैसी बात कर रहे हो? तुम्हारा दिमाग़ तो नहीं ख़राब हो गया है? भला ऐसा भी कहीं होता है? मेरी इतने बरसों की सर्विस में आज तक ऐसा नहीं हुआ। चलो तुम यहाँ से चलो। मुझे बहुत सा काम करना है। 


मूलचंदः देखो प्रिंसिपल मैं बिना पैसे लिए नहीं जाऊँगा। पैसे तो तुम्हें देने ही होंगे। वरना मैं शिक्षा मंत्रालय मे शिकायत कर दूँगा। 


प्रिंसिपलः ऐसे कैसे शिकायत कर दोगे? कोई मुद्दा ही नहीं है शिकायत करने का। फ़ालतू में। 


मूलचंदः देखो प्रिंसिपल मुझे कुछ नहीं मालूम। मुझे कुछ नहीं आता है। तुम चाहो तो मेरी परीक्षा ले लो। मैं हर विषय में अण्डा हूँ। हर विषय में गुड़-गोबर। 


प्रिंसिपलः अच्छा मुझे कुछ समय दो। मैं स्टॉफ से बात करता हूँ। बाहर जाकर बैठो



प्रिंसिपलः कैसी मुसीबत सर पर आ गई है। क्या करें उसका?


शिक्षक #1: यह बहुत चालाक इंसान लगता है। इससे निपटने की हमें तरकीब सोचनी होगी। 


शिक्षक #2: क्यों न हम उससे ऐसे सवाल पूछे जिनका जवाब बहुत आसान हो? वो सही जवाब ही देगा और पास हो जाएगा। और हम बच जाएँगे। 


शिक्षक #3: इतना आसान नहीं है उससे पीछा छुड़ाना। वह हर सवाल का जवाब जानबूझकर ग़लत दे तो?


शिक्षक #4: हम भी जानबूझकर हर जवाब को सही कह देंगे चाहे वो कितना ही ग़लत क्यों न हो। हम सब को इस पर सहमत रहना होगा कि जो भी वो जवाब दे उसे हम सही मान लें। 


सब लोगः हम सहमत हैं। 


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मूलचंदः अरे तुम सब बूढ़े-खूसट लोग अभी भी यहीं सड़ रहे हों? जितना ख़राब यह स्कूल है, उतने ही ख़राब तुम शिक्षक हों। तुम्हें कौन नौकरी देगा। यहीं सड़ोगे ज़िन्दगी भर। 


शिक्षक #1: वाह! क्या दूरदर्शिता है? तुम वस्तुस्थिति का सही विश्लेषण करने में पारंगत हो। इस क्षेत्र में मैं तुम्हें सौ प्रतिशत अंक देता हूँ। 


शिक्षक #2: अब मैं तुमसे भूगोल का प्रश्न पूछता हूँ। पश्चिम बंगाल कहाँ है? 


मूलचंदः पश्चिम में। सवाल में ही जवाब है। ऐसा सवाल कौन पूछता है?


शिक्षकः यह बहुत ही सही जवाब है। इससे तुम्हारी सूझबूझ का पता चलता है। यह भी पता चलता है कि भूगोल के साथ तुम्हें इतिहास की भी जानकारी है। एक ज़माने में बंगाल के दो भाग कर दिए गए थे। पूर्व बंगाल और पश्चिम बंगाल। पूर्व बंगाल पूर्व में था। और पश्चिम बंगाल पश्चिम में। 


मैं तुम्हें भूगोल सहित, इतिहास मे भी पूर्ण अंक देता हूँ। 


शिक्षक #3: कोई गेलेक्सी यदि पृथ्वी से बीस लाख लाइट यीयर्स यानी बीस लाख प्रकाश वर्ष दूर है तो वहाँ से रोशनी को यहाँ तक आने में कितना समय लगेगा?


मूलचंदः यही कोई चार सौ मीटर। 


शिक्षक #3: वाह! सही जवाब। आप तो परम ज्ञानी है। मुझे नहीं पता था कि समय को दूरी में कैसे बदलते हैं। आपने तो मेरे ज्ञान-चक्षु खोल देख दिए। मैं समय ढूँढ रहा था, आपने उसके दूसरे आयाम से अवगत करा दिया। क्वांटम मैकेनिक्स का इतना सूक्ष्म ज्ञान होना कोई आसान काम नहीं है। 


मूलचंदः ये कर क्या रहे हो तुम सब लोग? मैं जो कहूँ तुम सही मान लेते हो। मैं ऐसे हार नहीं मानने वाला। 


शिक्षक #4: गणित अभी बाक़ी है। मैं दो सवाल पूछूँगा। एक आसान। एक कठिन। 


पहला सवाल। यदि कोई इंसान भागलपुर से वैष्णोदेवी की यात्रा पर निकलता है और दस दिन बाद उसके घर चोरी होती है तो उसके कितने रूपये चोरी हुए?


मूलचंदः तीन सौ बीस। पूरे तीन सौ बीस। न एक पैसा कम। न एक पैसा ज़्यादा। 


शिक्षक #4: बिलकुल ग़लत। सही जवाब है तीन सौ उन्नीस रूपये। मुझे अफ़सोस है कि तुम्हारा जवाब क़रीब-क़रीब सही था पर पूर्णतः सही नहीं था इसलिए तुम गणित में पास नहीं हो सकते। 


अब सारी फ़ीस का हिसाब करके बताओ कि हमें तुम्हें कितना देना है। 


मूलचंदः वाह! देखो प्रिंसिपल मैं न कहता था मैं आज पैसे लेकर ही जाऊँगा। 


चार साल की पढ़ाई में चालीस महीनों की फ़ीस भरी। हर महीने ढाई सौ। चालीस गुणा ढाई सौ हुए दस हज़ार। ऊपर से लैब फ़ीस वग़ैरह थी तीन सौ रूपये हर महीने आखरी के दो साल। यानी बीस महीने। बीस गुणा तीन सौ हुए छः हज़ार। कुल सोलह हज़ार। फिर फ़ील्ड ट्रिप. यूनिफ़ॉर्म, साइंस फ़ेयर की मिला-जुलाकर हो गई दो हज़ार। कुल अठारह हज़ार। 


चलिए अठारह हज़ार रूपये दीजिए और मैं चलता हूँ। 


शिक्षक #4: अरे वाह! तुम तो हिसाब के बहुत ही पक्के निकले। यही तो मेरा कठिन सवाल था। आसान सवाल का जवाब तुम थोड़ा ग़लत कर गए पर कठिन सवाल का जवाब एकदम सही। इस नए तथ्य को देखते हुए तुम्हें मैं गणित में पास घोषित करता हूँ। बधाई हो। तुम इस स्कूल के एक कुशल छात्र हो यह तुमने आज साबित कर दिया है। 


प्रिंसिपल चपरासी सेः इस इंसान को बाहर करो।


(फ्रीट्ज़ करींथी के नाटक से प्रेरित)

राहुल उपाध्याय । 17 अगस्त 2024 । ऐम्स्टरडम

(https://egyankosh.ac.in/bitstream/123456789/27478/1/Unit-4.pdf

Fritz Karinthy's play Refund)




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