अत्याचार और ज़ुल्म की कोई जाति नहीं होती। कोई धर्म नहीं होता। कोई देश नहीं होता। यह सिर्फ मानवीय भावनाओं पर निर्भर करता है। कोई अत्याचार करना चाहता है और करता है। अनजाने में नहीं, जानबूझकर करता है। और कोई अत्याचार सहता है। सहता ही रहता है। सहने में अपनी भलाई समझता है। हवाई आठ द्वीपों का समूह जहां एक हज़ार वर्ष पहले तक कोई आबादी नहीं थी। बाद में आसपास के द्वीपों से लोग आकर बस गए। उन्हें लगा कि प्रशासन चलाने के लिए, राजा-प्रजा वाला सिस्टम स्थापित करना होगा। कुछ राजा बन गए। बाक़ी प्रजा। नियम बना दिए गए कि राजा से आँख नहीं मिलाई जा सकती, राजा की राह में नहीं आ सकते, आपकी परछाई राजा की परछाई को छू नहीं सकती। इन तीनों सूरतों में आपको मौत की सजा दी जाएगी। ऐसी ही परिस्थिति हमारे यहाँ सामन्तवाद में थी। और यह स्थिति आज भी हर कहीं है। दफ़्तर में, कॉलेज में, घर में। पिता से ज़बान लड़ाता है? जवाब देने लग गए हो? इस घर के नियम हर बहू मानती आई है, तुम्हें भी मानना ही होगा। कब साड़ी पहननी है, कब सूट, हम तय करेंगे। किस त्योहार पर किसकी पूजा कितनी बजे होगी, क्या बनेगा, कौन बनाएगा, हम तय करेंगे। जवाब नहीं दे सकते, सवाल नहीं पूछ सकते। ये कैसे परिवार हैं? डर पैदा कर इज़्ज़त कमाना? ख़ुशी है कि संयुक्त परिवार के विघटन से कम से कम नई पीढ़ी को यह आज़ादी तो मिली है कि वे पिता से आँख से आँख मिलाकर बात कर सकते हैं। ससुर के चंगुल से बच सकते हैं। राहुल उपाध्याय । 3 अक्टूबर 2024 । कवाई, हवाई
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