सबकी कहानी एक सी है। सबकी कहानी अलग है। चाहे वो सिंगापुर की वाणी हो। या अमेरिका का मुश्ताक़।
मुश्ताक़ महाराष्ट्र में पैदा होकर पाकिस्तान में पला-बढ़ा और सऊदी में डॉक्टर की हैसियत से रहने लगा। पत्नी भी डॉक्टर। समाज में खूब इज़्ज़त। पैसा भी बहुत कमाया। 1990 में 40 की उम्र में पाँच लाख डॉलर की बचत। पाकिस्तान में तीन लाख डॉलर की सम्पत्ति। सब ठीक चल रहा था।
मुश्ताक़ आगा खानी इस्माइली है। पूरा मुसलमान नहीं। ठीक से पता भी नहीं कि इस्लाम क्या होता है।
सऊदी में हफ़्ते में एक दिन इस्माइलों की जमात होती थी। जहां धर्म-कर्म आधा घंटा होता था। बाक़ी समय खाना-पीना, गपशप, नाच-गाना होता था। किसी ने शिकायत कर दी कि यहाँ नशीले पदार्थ बेचे जाते हैं। पुलिस आ धमकी। बहुत बेइज़्ज़ती हुई।
बहन और बहनोई अमेरिका में आराम से बसर कर रहे थे। बहनोई रियल इस्टेट के धंधे में सफलता के झंडे गाड़ रहे थे। भानजे ने कहा अमेरिका आ जाओ। बच्चों का भविष्य बन जाएगा।
इनके भाई भी अमेरिका में थे। वे परचूनी दुकान चला रहे थे।
ये बोरिया-बिस्तर बांधकर अमेरिका चले आए। आए तो थे विज़िटर वीसा पर भाई से मिलने। वीसा के तहत छ: महीने के अंदर अमेरिका छोड़ देना चाहिए था। ये रूक गए। बारह-तेरह साल ग़ैर क़ानूनी रूप से रहे। बच्चे छोटे थे सो हाई स्कूल तक की पढ़ाई में कोई बाधा नहीं थी। ऊपर से शिक्षा नि:शुल्क भी थी। बचत ज़्यादा दिन नहीं चल सकती। भाई ने मदद की। एक परचूनी दुकान खरीदवा दी। चार लाख डॉलर में। फिर भी थे तो अवैध ही।
अमेरिका में हज़ारों लोग ऐसे ही रह जाते हैं। सरकार के पास इतना समय नहीं है कि हर अवैध को ढूँढती फिरे और उसे निष्कासित करे। इन्हीं अवैध व्यक्तियों के पीछे ट्रम्प आवाज़ उठा रहे हैं।
ख़ैर बहनोई के पास ज़्यादा पैसा था। वे उन्हें वैध बनने में मदद करवा सकते थे। मदद की भी। पर उस प्रकिया में तीन साल लग गए। तीसरे साल में बहन और बहनोई के रिश्तों में खटास आ गई। बहनोई मुकर गए मदद करने से। काफ़ी कोशिश के बाद बहनोई राज़ी हुए कि नहीं तो बच्चों का भविष्य बिगड़ जाएगा और मुश्ताक़ के पास ग्रीन कार्ड आ गया, बच्चों को कॉलेज में दाख़िला मिल गया और आज सब खुशहाल हैं।
जब तक ग्रीन कार्ड नहीं आया था दोनों पति-पत्नी झरझर आँसू रोते थे कि कहाँ फँस गए। डॉक्टर होते हुए अमेरिका में कभी डॉक्टरी नहीं की।
दो बेटी, दो बेटे हैं। सबकी शादी हो गई। एक को छोड़कर। वह शादी को घाटे का सौदा मानता है।
चारों बच्चे हर महीने पाँच सौ डॉलर अपने माता-पिता को देते हैं जबकि सरकार की तरफ़ से सोशियल सिक्योरिटी, एक तरह की पेंशन, मिल रही है। उन पैसों को ये एक एकाउंट में जमा कर देते हैं जो कि बच्चों के ही नाम पर है।
पाकिस्तान में तीन फ़्लैट हैं। उनके किराए से साली का घर चलता है जो आजीवन अविवाहित रही और जिसने इनके बच्चों का ख़याल रखा जब ये शुरू में सऊदी में संघर्ष कर रहे थे। सास का भी ख़याल उसने रखा। अब सास नहीं रहीं। होती तो उनका ग्रीन कार्ड करवा, सिटीज़न बनवा, साली का ग्रीन कार्ड भी बनवा सकते थे।
अमेरिका को या विदेश को कोई कितना ही बुरा-भला कह ले, अंततोगत्वा सबका मन विदेश जाने का, विदेश में बसने का हो ही जाता है।
सबकी कहानी एक है। सबकी कहानी अलग है।
राहुल उपाध्याय । 2 अक्टूबर 2024 । कोना, हवाई
No comments:
Post a Comment