हमने रात्रि का भोजन येमेन रेस्टोरेन्ट में किया। नीली प्लास्टिक (पन्नी) जो दिख रही है उस पर ही खाना खाया जाता है। कोई प्लेट नहीं मिलती है। न चीनी की। न प्लास्टिक की।
पूरी टेबल पर एक बड़ी प्लास्टिक। सबके लिए अलग नहीं।
रोटी भी इतनी बड़ी है कि हाथ से तोड़ कर शेयर करनी पड़ती है।
ऐसा माहौल दिल को छू गया। पहली बार ज़िन्दगी में ऐसा देखा। बचपन की याद आ गई जब सैलाना में हम सात-आठ भाई बहन एक ही थाली में साथ खाते थे। तीन सेकेंड में एक रोटी ग़ायब हो जाती थी। कुछ खा पाते थे। कुछ मुँह ताकते रहते रहते थे। चम्मच तो होता नहीं था कि बिना रोटी के भी कुछ खा लो।
रेस्टोरेन्ट में चम्मच और काँटे ज़रूर दिए गए। मेरे विचार से उन्हें भी हटा देना चाहिए। रोटी तो हाथ से ही खाई जाती है। चावल भी खाए जा सकते हैं।
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