Monday, June 24, 2024

महाराज - समीक्षा

महाराज फिल्म यश राज की फ़िल्म है। आदित्य चोपड़ा निर्माता हैं। पता नहीं क्या सोचकर देखनी शुरू कर दी। संजय भंसाली की शैली से प्रभावित लगी। नाच-गाने-रंग-वेषभूषा सब देवदास की नक़ल लगे। 


हीरो - जूनेद खान - गले से उतरा नहीं। न व नसीरुद्दीन शाह है, न अमोल पालेकर। 


हीरोइन - शालिनी पांडेय- भी कोई ख़ास नहीं। आलिया को नक़ल करने की कोशिश कर रही थी। 


लेकिन दूसरी हीरोइन - शार्वरी -  कमाल की है। इसे कहते हैं अभिनय जो कि मरी फ़िल्म में जान फूंक दे। 


बाद में फ़िल्म भी गति पकड़ती है। बहुत ही अनूठा विषय है और यह जानकर दुख होता है कि ऐसा सच में होता था। किसी की भावनाओं को ठेस न पहुँचे इसलिए बार-बार दोहराया जाता है कि वैष्णव सम्प्रदाय में कोई ख़राबी नहीं है। 


फ़िल्म में जो सबसे ज़रूरी बात कही गई है वह यह कि समाज की कुरीतियों के लिए हम सब ज़िम्मेदार हैं। समाज के ठेकेदार नहीं। 


राहुल उपाध्याय । 24 जून 2024 । सिएटल 


No comments: