ऐसे थे बाबूजी
—ज्योति नारायण त्रिवेदी
हमारे पिताजी को हम सब बाबूजी कहते थे। बाबूजी का पूरा नाम कैलाशनारायण था। बाबुजी का जन्म 17 जून 1934 को सैलाना में हुआ था। बाबूजी अपने माता पिता की सबसे बड़ी संतान थे। बाबूजी की माध्यमिक स्कूल तक की शिक्षा सैलाना में हुई तथा मेट्रिक तक की शिक्षा सन् 1951 में अपने ताऊजी के घर रहकर मंदसौर से पूरी की। सन् 1952 मे़ं वे सैलाना के पास यग्राम अडवानिया में प्राथमिक स्कुल शिक्षक बन गये। सन् 1955 में पश्चिम रेलवे में स्टेशन मास्टर बन गये। बाबूजी की रेलवे में पहली नियुक्ति गुजरात राज्य में बड़ौदा के पास ढबोई नामक स्थान पर हुई। बाद में वे पश्चिम रेलवे के रतलाम मंडल में पंचपिपलया, रूनखेड़ा, खाचरोद, जावरा, नागदा, बांगरोद, बेडावन्या आदि स्टेशनों पर पदस्थ रहते हुए सन 1982 मे़ं स्वेच्छा से सेवानिवृत्ति ले ली।
यह बात सुनने में ही अविश्वसनीय लगती है कि कोई बेटा अपने पिता को विश्राम देने के लिये लगी लगाई सरकारी नौकरी, वो भी रेलवे की, छोड़कर घर आ जाए। यह अविश्वसनीय घटना घटी 19 अक्टूबर 1982 को। उस दिन बाबूजी की माताजी, हमारी दादीजी, का अकस्मात निधन हो गया। उनका पार्थिव देह रात्रि में घर लाया गया। उस रात्रि को ही हमारे दादाजी ने अपनी सेवानिवृत्ति की घोषणा कर दी और बाबूजी को उनके सारे कार्यों को करने का आदेश दिया। बाबूजी ने उनके आदेश को शिरोधार्य कर रेलवे से सेवानिवृत्ति ले ली और अपने पिता काम संभाला। उस समय बाबूजी करना राज करने जैसा हुआ करता था। पर बाबूजी ने राज करने के बजाय अपने पिता को विश्राम देने की पुनीत और कठिन जिम्मेदारी निभाई।
उनके पिता प्रजामंडल के जमाने के स्वतंत्रता संग्रामके सेनानी थे तथा सन् 1936 से निजी विद्यालय संचालित कर रहे थे। वे सन् 1947 से ही नईदुनिया सहित अनेक पत्र-पत्रिकाओं से सम्बन्धित थे। साथ ही वे अनेक सामाजिक संगठनों से भी जुड़े थे। बाबूजी ने उनके सारे क्रियाकलापों को जस का तस स्वीकार कर बिना किसी घालमेल के उन्हें निरंतर बनाए रखा। बाबूजी के इरादे नेक थे। अतः भगवान ने भी उनकी मदद की तथा वे शीघ्र ही सैलाना के शिक्षा, पत्रकारिता और समाजसेवा क्षेत्र के स्तम्भ बन गये।
उन्हें सैलाना ही नहीं पूरा अंचल बाबूजी कहता था। वे त्रिवेदीजी से बाबूजी कब और कैसे बने कोई नहीं जानता। शायद बाबूजी को भी इस संबोधन यात्रा का उद्गम ज्ञात नहीं होगा। बाबूजी ने सैलाना में प्रेसक्लब की स्थापना की और अंत तक व्यवहारिक अध्यक्ष बने रहे। सनाढ्य ब्राह्मण समाज मंदिर के भी अंत समय तक अध्यक्ष बने रहे। उन्होंने शांतिवन जीर्णोद्धार का बीड़ा उठाया और अपने विश्वसनीय साथियों की टीम बनाकर उसका कायाकल्प कर दिया। उन्होंने शांतिवन में पौधे रोपे और प्रतिदिन चार किलोमीटर दूर सायकल से पौधों को पानी पिलाने जाते थे। आज हरा-भरा शांतिवन अंतिम यात्रा में सम्मिलित होने वाले लोगों को सुकून दे रहा है। नईदुनिया अखबार के माध्यम से जनहितैषी समाचारों को छापने से कभी गुरेज नहीं किया। सैलाना नल जल योजना के सुचारू क्रियान्वयन के लिये पी-एच-ई से लेकर नगर परिषद को सौपने के लिये उन्होंने अखबार के माध्यम से शासन तक बात पहुंचाई। नगर परिषद को जलप्रदान का कार्य सौपने से आज लोगों के घर में नियमित जलप्रदान हो रहा है। सैलाना बायपास के लिये काफी लंबे समय तक शासन का ध्यान अपने अखबार के माध्यम से आकर्षित किया। बायपास बनने से सैलाना की यातायात व्यवस्था काफी बेहतर हुई है। रेलवे के नियम के अनुसार बाबूजी को प्रथम श्रेणी पास की सुविधा थी किंतु रेलवे छोड़ने के बाद उन्होंने एक बार भी इसका उपयोग नहीं किया। मुफ्तखोरी के इस जमाने में बाबूजी ऐसा कैसे कर लेते थे इसका उत्तर कभी नहीं मिलेगा। उन्हें लोगों का सम्मान और लाड़ प्यार मिला और खूब मिला क्योंकि वे सबको अपने मन की तलहटी से सम्मान और प्यार देते थे।
हम सबको भी बाबूजी ने अनुशासन में रहकर ईमानदारी से कार्य करने की प्रेरणा दी। आइये सब आज उनकी पुण्यतिथि के अवसर पर उनके बताए हुए मार्ग पर चलने की प्रतिज्ञा ले।
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