हमारी ज़िन्दगी बिना अंग्रेज़ी के नहीं चल सकती। यह तय है। और इस बात को मानने में कोई बुराई नहीं है।
किसी युवती को माहवारी में यदि देर हो जाए और वह जानना चाहें कि वह गर्भवती है या नहीं, बिना अंग्रेज़ी जाने यह सम्भव नहीं है। कोई उपकरण नहीं है जिसमें देवनागरी अक्षर हो। सब में अंग्रेज़ी/रोमन है। उसे अपनी निजी जानकारी के लिए किसी अंग्रेज़ी के जानकार की मदद लेनी पड़ती है।
यदि आप अपना बुख़ार नापना चाहें, कोई उपकरण नहीं जिसमें देवनागरी में अक्षर/अंक हो।
कार में गियर रोमन में हैं। देवनागरी में नहीं।
वजन लेना हो तो अंग्रेज़ी में।
ये वैज्ञानिक यंत्र हैं। उपकरण हैं। जिनका अविष्कार पश्चिमी देशों में हुआ। हिन्दी/देवनागरी का अभाव समझ में आता है।
जितनी भी ऑनलाइन सेवाएँ हैं, अंग्रेज़ी से अनभिज्ञ इंसान को इस आत्मनिर्भर भारत में किसी और पर निर्भर होना पड़ता है, किसी कियोस्क में जाकर किसी दूसरे को अपना ओ-टी-पी देना पड़ता है।
बुरा तो तब लगता है जब हम अपनी भावनाएँ व्यक्त करने में भी इसके बाहुल्य से नहीं बच पाते हैं।
क्या किसी को याद करना पाश्चात्य संस्कृति की उपज है? क्या किसी से विदा लेना पश्चिमी देशों ने सीखाया? क्या किसी को ख़ुशियाँ देना हमने कहीं और से सीखा? क्या हमें पहले प्यार करना नहीं आता था? क्या हम सांत्वना देना नहीं जानते थे।
आई मिस यू।सी यू लेटर। बाय। कॉन्ग्रेचुलेशन्स। आई लव यू। माई डीपेस्ट कंडोलेन्सेस।
जन्मदिन मनाना शायद हमने पश्चिम से सीखा। इसलिए हैप्पी बर्थडे समझ में आता है। लेकिन हैप्पी दीवाली? हैप्पी होली?
कोई भी कार्यक्रम तय करना हो जहाँ दो-चार परिवार इकट्ठे करने हो, तुरंत व्हाट्सएप ग्रुप बन जाता है। हिन्दी/देवनागरी की तमाम सुविधाएँ होने के बावजूद अंग्रेज़ी में ही सारी जानकारियों का आदान-प्रदान होता है।
कितने लोग आ रहे हैं? यह नहीं पूछा जाता। आई नीड हेडकाऊंट।
कृपया किसी के शब्दकोश में नहीं है। प्लीज़ का कोई हिसाब नहीं है। हर दूसरे वाक्य में प्लीज़ होता है। प्लीज़ कम ऑन टाईम। केन यू प्लीज़ रिस्पांड।
धन्यवाद कौन कहता है? थैंक्यू से पूरा व्हाट्सएप भरा पड़ा है।
लगता है हम स्वस्थ, ज्ञानी, सुशिक्षित, सुसंस्कृत एवं विनम्र अंग्रेज़ी पढ़-लिख-बोल-सुन कर ही हुए हैं।
राहुल उपाध्याय । 22 सितम्बर 2021 । दिल्ली